Saturday, January 20, 2018

पापा ने अपने लंड पर बैठ के सेक्सी मजा दिया

हैल्लो दोस्तों, मेरा नाम निशा है और में दिल्ली की रहने वाली हूँ। मेरे घर में मेरे मम्मी, पापा और मेरे दादा, दादी है। में मेरे बाप की एक ही औलाद हूँ। मुझे मेरे माँ बाप ने बड़े प्यार से बड़ा किया है। आज मेरी उम्र 21 साल की है, लेकिन मुझे देखकर कोई कह नहीं सकता कि मेरी उम्र इतनी कम होगी, क्योंकि मेरा बदन बिल्कुल एक 24 साल की लड़की की तरह हो चुका है, मेरा फिगर साईज 34-28-36 है और इसकी वजह में खुद ही हूँ, जो 18 साल की उम्र से ही सेक्स की तरफ ज़्यादा ध्यान देने लगी थी और लगभग तब से में चूत में उंगली करने लग गयी थी।


मेरे घर में 5 रूम है, एक में मेरे मम्मी पापा और दूसरे में मेरे दादा दादी, जो अब 60 से ज्यादा उम्र के है और ज़्यादातर अपने कमरे में ही लेटे रहते है और तीसरे में में खुद रहती हूँ और बाकि के दो कमरे हम अलग-अलग कामों के लिए उपयोग में लेते है। मेरे पापा की उम्र 38 साल की है। मेरी माँ वैसे तो बहुत खूबसूरत है, लेकिन बहुत ही पुराने विचारो वाली एक साधारण औरत है, जो अपना ज़्यादातर वक़्त पूजा पाठ या अपने सास ससुर की सेवा में और घर के काम काज में गुजारती है। मेरे पापा जो एक बिजनसमैन है और अपना खुद का बिजनेस चलाते है। हम बहुत अमीर तो नहीं है, लेकिन हमारे घर में किसी चीज की कोई कमी नहीं है। मेरे पापा भी बहुत हैंडसम है, लेकिन मेरी माँ तो उन्हें टाईम ही नहीं दे पाती है, सिर्फ़ रात में जब उनके सोने का वक़्त होता है जब ही उनके पास जाती है।


यह बात तब की है, जब मेरी उम्र 18 साल की थी। एक रात हम सब खाना खाकर सोने के लिए अपने अपने रूम में चले गये थे कि तभी अचानक से मुझे लगा कि मेरे मम्मी पापा के रूम से लड़ने की आवाज़े आ रही है। मम्मी पापा का रूम मेरे रूम से ही लगा हुआ था, मुझे ज़िंदगी में पहली बार लगा था कि मम्मी पापा की लड़ाई हो रही है इसलिए में यह जानना चाहती थी कि वो लड़ क्यों रहे है? तो पहले तो मैंने सोचा कि में मम्मी से जाकर पूंछू, लेकिन फिर बाद में सोचा कि वो लोग मेरे सामने शर्मिंदा हो जाएगे इसलिए मैंने पूछना उचित नहीं समझा, लेकिन फिर भी मेरे मन में वजह जानने की इच्छा तेज होती गयी और जब मुझसे नहीं रहा गया तो मैंने उठकर देखने की कोशिश की। मेरे रूम में एक खिड़की थी, जो उनके कमरे में खुलती थी, वो खिड़की बहुत पुरानी तो नहीं थी, लेकिन उसमें 2-3 जगह छेद थे। फिर मैंने अपने रूम की लाईट ऑफ की और उस छेद में आँख लगा दी। अब अंदर का नज़ारा देखकर मेरे बदन में करंट सा दौड़ गया था।


अब मेरी मम्मी जो कि सिर्फ़ ब्रा और पेटीकोट में थी और बेड पर बैठी थी और मेरे पापा सिर्फ़ अपनी वी-शेप अंडरवेयर में खड़े थे और बार-बार मम्मी को अपनी ब्रा उतारने के लिए कह रहे थे और मेरी मम्मी उन्हें बार-बार मना कर रही थी। फिर मैंने देखा कि मेरे पापा की टाँगों के बीच में जहाँ मेरी पेशाब करने की जगह है, वहाँ कुछ फूला हुआ है। अब मेरी नजर तो बस वही टिक गयी थी और में चाहकर भी अपनी नजर हटा नहीं पा रही थी। अब वो लोग कुछ बात कर रहे थे, लेकिन मेरा ध्यान तो सिर्फ पापा की टाँगों के बीच में ही था और उनकी बातें सुनने का ध्यान भी नहीं था। अब मेरा दिल ज़ोर- ज़ोर से धड़क रहा था और मेरा बदन बिल्कुल अकड़ गया था और इसके साथ ही मुझ पर एक और बिजली गिरी और फिर मेरे पापा ने झटके से अपना अंडरवेयर भी उतार दिया। ओह गॉड मेरी तो जैसे साँसे ही रुक गयी थी। मेरे पापा की टाँगों के बीच में एक लकड़ी के डंडे की तरह कोई चीज लटकी हुई थी, जो कि मेरे हिसाब से 8 इंच लंबी और 3 इंच मोटी थी, उस चीज को क्या कहते है? मुझे उस वक़्त पता नहीं था।


फिर मेरी मम्मी उस चीज को देखकर पहले तो गुस्सा हुई और फिर शर्म से अपनी नजरे झुका ली। अब उन्हें भी मस्ती आने लगी थी और फिर उन्होंने इशारे से पापा को अपने पास बुलाया और उनके उस हथियार को प्यार से सहलाने लगी थी। फिर मम्मी ने अपनी ब्रा उतारी और अपने पेटीकोट का नाड़ा खोला और फिर बिल्कुल नंगी होकर सीधी लेट गयी और अपनी टांगे खोलकर पापा को अपनी चूत दिखाई और इशारे से उन्हें पास बुलाने लगी थी। फिर मेरे पापा कुछ देर तक तो गुस्से में सोचते रहे और फिर जैसे अपना मन मारकर उनके ऊपर उल्टे लेट गये और अपने एक हाथ से अपना लंड पकड़कर मम्मी की चूत में डाला और हिलते हुए मम्मी को किस करने लगे थे और फिर लगभग 10 मिनट तक हिलने के बाद वो शांत हो गये और ऐसे ही पड़े रहे।


फिर थोड़ी देर के बाद मम्मी ने उन्हें अपने ऊपर से हटाया और अपने कपड़े पहने और लाईट बंद करके सोने के लिए लेट गयी। अब कमरे में बिल्कुल अंधेरा होने की वजह से मुझे कुछ नहीं दिख रहा था, तो तब मैंने भी जाकर लेटने की सोची और फिर में भी अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी, लेकिन अब मेरी आँखों के सामने तो मम्मी पापा की पिक्चर चल रही थी और पापा का वो भयानक हथियार पता नहीं मुझे क्यों बहुत अच्छा लग रहा था? अब मेरा दिल कर रहा था कि में भी उनके हथियार अपने हाथ में लेकर देखूं। उस रात मेरी चूत में बहुत खुजली हो रही थी। फिर मैंने उस रात पहली बार हस्तमैथुन किया। अब मेरे ख्यालों में और कोई नहीं बल्कि मेरे पापा ही थे। फिर जब मेरी चूत का रस निकला, तो तब में इतनी थक चुकी थी कि कब मेरी आँख लग गयी? मुझे पता ही नहीं चला। फिर सुबह मम्मी ने जब आवाज लगाई तो मेरी आँख खुली। फिर मम्मी बोली कि बेटा सुबह के 7 बज रहे है, स्कूल नहीं जाना है क्या? तो तब में उठकर सीधी बाथरूम में गयी और नहाने के लिए अपने कपड़े उतारे।


फिर तब मैंने देखा कि मेरी पेंटी पर मेरी चूत के रस का धब्बा अलग ही दिख रहा है। अब मेरी आँखों के सामने फिर से वही नज़ारा आ गया था। अब मुझे फिर से मस्ती आने लगी थी तो मैंने फिर से अपनी चूत में उंगली करनी चालू कर दी और तब तक करती रही जब तक कि में झड़ नहीं गयी। दोस्तों मुझे इतना मज़ा आया था कि में यह सोचने लगी कि जब उंगली करने में ही इतना मज़ा आता है तो सेक्स में कितना मज़ा आता होगा? और फिर में अपने पापा के साथ ही यह मज़ा लेने की सोचने लगी और सोचने लगी कि कैसे पापा के साथ मज़ा लिया जाए? खैर जैसे तैसे करके में स्कूल जाने के लिए तैयार हुई और ड्रेस पहनकर बाहर आई तो नाश्ते की टेबल पर मेरा पापा से सामना हुआ, में रोज सुबह पापा को गुड मॉर्निंग किस करके विश करती थी। तो तब मैंने उस दिन भी पापा को किस करके ही विश किया, लेकिन इस बार मैंने कुछ ज़्यादा ही गहरा किस किया और थोड़ा अपनी जीभ से उनके गाल को थोड़ा चाट लिया, जिससे मेरे पापा पर कुछ असर तो हुआ, लेकिन उन्होंने मेरे सामने ज़ाहिर नहीं किया था।


अब में उनके ठीक सामने जाकर कुर्सी पर बैठकर नाश्ता करने लगी थी और फिर नाश्ता करने के बाद में स्कूल की बस पकड़ने के लिए बाहर जाने लगी, लेकिन मेरा मन पापा को छोड़कर जाने का नहीं हो रहा था, तो तब में बाहर तो गयी, लेकिन कुछ देर के बाद वापस आकर मैंने बहाना बनाया की मेरी बस निकल चुकी है। अब ऐसी स्थिति में पापा मुझे स्कूल छोड़कर आया करते थे, तो तब मम्मी बोली कि जा पापा से कह दे, वो तुझे स्कूल छोड़ आएँगे। फिर में खुशी-खुशी पापा के कमरे में गयी। अब पापा सिर्फ़ अपने पजामे में थे। फिर मैंने पापा से कहा तो वो मुझे स्कूल छोड़ने के लिए राज़ी हो गये। अब पापा अपनी पेंट पहनने लगे थे। फिर मैंने उनके हाथ से पेंट लेते हुए कहा कि पापा पजामा ही रहने दीजिए, में लेट हो रही हूँ। तो तब पापा बोले कि ठीक है, में टी-शर्ट तो पहन लूँ, तू मेरा बाहर इन्तजार कर, तो में बाहर आकर इन्तजार करने लगी।


पापा मुझे ज़्यादातर स्कूल कार में ही छोड़ते थे, लेकिन उस दिन मेरे कहने पर उन्होंने मुझे हमारी एक्टिवा स्कूटर पर स्कूल छोड़ने के लिए गये। दोस्तों यहाँ तक तो मेरा प्लान सफल रहा था, लेकिन आगे के प्लान में थोड़ा खतरा था और मुझे यकीन नहीं था कि वो सफल हो जाएगा। फिर में उनके पीछे बैठ गयी और फिर हम स्कूल की तरफ चल दिए। मेरा स्कूल घर से लगभग 10 किलोमीटर दूर था, रास्ता लंबा था और सुबह का वक़्त था, तो रोड सुनसान थी। फिर जब हम घर से 2 किलोमीटर दूर आ गये, तो तब मैंने पापा से कहा कि गाड़ी में चलाऊँगी। तो तब पापा बोले कि बेटी तुझसे गाड़ी नहीं चलेगी, तो में तो ज़िद्द करने लगी। तो तब पापा परेशान होकर बोले कि ठीक है, लेकिन हैंडल में ही पकडूँगा। अब मुझे मेरा प्लान कामयाब होता दिख रहा था।


फिर तब मैंने कहा कि ठीक है और पापा ने गाड़ी साईड में रोककर मुझे अपने आगे बैठाया और मेरी बगल में से अपने दोनों हाथ डालकर हैंडल पकड़ा और धीरे-धीरे चलाने लगे। लेकिन अब गाड़ी चलाने में किसका ध्यान था? अब मेरा ध्यान तो पापा के पजामे में लटके उनके लंड पर था। तो तभी गाड़ी जैसे ही खड्डे में गयी, तो मैंने हिलने का बहाना करके उनका लंड ठीक मेरी गांड के नीचे दबा लिया। अब पापा कुछ अच्छा महसूस नहीं कर रहे थे। अब में अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी थी। अब गर्मी पाकर उनका लंड धीरे-धीरे खड़ा होने लगा था, जिससे मुझे भी मस्ती आने लगी थी। अब पापा को भी मज़ा आ रहा था और फिर इस तरह मस्ती करते हुए में स्कूल पहुँच गयी। फिर पापा को जाते वक़्त मैंने एक बार फिर से किस किया। अब पापा शायद मुझे लेकर कुछ परेशान हो गये थे और में मेरी तो पूछो मत, मेरी हालत तो इतना करने में ही बहुत खराब हो गयी थी और मेरी पेंटी इतनी गीली हो चुकी थी कि मुझे लग रहा था मेरी स्कर्ट खराब ना हो जाए। दोस्तों ये कहानी आप


फिर पूरे दिन स्कूल में मेरे दिमाग में पापा का लंड ही घूमता रहा और अब मेरा दिल कर रहा था कि में पापा के लंड पर ही बैठी रहूँ। अब पता नहीं मुझे क्या हो गया था? ऐसा कौन सा वासना का तूफान मेरे अंदर था कि में पापा से चुदने के लिए ही सोचने लगी थी। खैर आगे बढ़ते है, फिर में चुदाई की इच्छा और गीली पेंटी लेकर घर पहुँची। अब उस वक़्त लगभग 3 बज रहे थे। अब घर में दादा, दादी के अलावा कोई नहीं था, मम्मी कहीं गयी हुई थी और पापा अपने ऑफिस में थे। ख़ैर फिर में बाथरूम में गयी और गंदे कपड़ो में से पापा की अंडरवेयर ढूंढकर अपनी चूत पर रगड़ते हुए हस्तमैथुन किया। अब मुझे बहुत मज़ा आया था और फिर में सो गयी। फिर मेरी आँख खुली तो शाम के 5 बज रहे थे। फिर मैंने नहा धोकर कपड़े पहने और मैंने कपड़े भी उस दिन कुछ सेक्सी दिखने वाले पहने थे, मैंने एक शॉर्ट स्कर्ट और फिटिंग टी-शर्ट पहनी थी। अब पापा के आने का टाईम हो गया था, लेकिन मम्मी का कोई पता नहीं था।


फिर शाम के 6 बजे पापा ने घंटी बजाई तो में दौड़ती हुई गयी और दरवाजा खोला। फिर पापा मुझे देखकर थोड़े मुस्कुराए और मुझे गले लगाकर मेरे गालों पर किस करते हुए बोले कि बेटा आज तो बहुत स्मार्ट लग रही हो। अब मुझे इतनी खुशी हुई थी कि में पापा को फंसाने में धीरे-धीरे सफल होती जा रही थी। फिर अंदर आकर पापा ने चाय का ऑर्डर कर दिया तो में किचन में जाकर चाय बनाने लगी। फिर पापा भी फ्रेश होकर किचन में आ गये और इधर उधर की बातें करने लगे थे। फिर थोड़ी देर में पापा मेरी गोरी जांघो देखकर गर्म हो गये और मेरे पीछे खड़े होकर अपना लंड मेरी गांड से सटाने की कोशिश करने लगे थे। तब में भी अपनी गांड को उनके लंड पर रगड़ने लगी। अब मुझे तो ऐसा लग रहा था कि जैसे में जन्नत में हूँ और बस ऐसे ही खड़ी रहूँ।


ख़ैर अब चाय बन चुकी थी और फिर मैंने पापा से डाइनिंग रूम में जाकर बैठने को कहा और चाय वहाँ सर्व करके बाथरूम में जाकर फिर से उंगली करने लगी थी। फिर में झड़ने के बाद बाहर आई, तो तब तक मम्मी भी आ चुकी थी। मुझे मम्मी पर बहुत गुस्सा आया, क्योंकि मुझे पापा से अभी और मज़ा लेना था और मम्मी के सामने में कुछ नहीं कर सकती थी। अब पापा भी मम्मी के आने से थोड़े दुखी हो गये थे, क्योंकि ना तो वो कुछ करती थी और ना ही उन्हें कुछ करने देती थी। अब पापा मुझे देखकर बार-बार अपना लंड पजामे के ऊपर से ही सहला रहे थे और मुझे भी उन्हें सताने में बहुत मज़ा मिल रहा था। फिर खाना खाने के बाद पापा मुझसे बोले कि बेटी चल थोड़ा घूमकर आते है और मुझे लेकर घर के बाहर आ गये। फिर बाहर आकर उनका मूड चेंज हुआ और मुझसे बोले कि चल बेटा पिक्चर देखने चलते है। तो तब मुझे पापा पर इतना प्यार आया कि पापा मेरे साथ अकेला रहने की कितनी कोशिश कर रहे है? खैर फिर हम एक्टिवा पर सवार होकर एक सिनिमा में पहुँच गये और रास्ते में ही मम्मी को फोन कर दिया कि हम पिक्चर देखने जा रहे है। जब सिनिमा में कोई पुरानी मूवी लगी होने की वजह से ज़्यादा भीड़ नहीं थी, पूरे हॉल में लगभग 30-40 लोग ही होंगे।


अब मुझे पापा की समझदारी पर बहुत खुशी हुई थी, वो चाहते तो मुझे किसी बढ़िया पिक्चर दिखाने ले जाते, लेकिन उन्हें शायद कुछ ज़्यादा मज़े लेने थे। फिर उन्होने सबसे महेंगे टिकट लिए और फिर हम लोग बालकनी में जाकर बैठ गये। हमारा नसीब इतना बढ़िया चल रहा था की बालकनी में सिर्फ़ हमारे अलावा सिर्फ़ एक ही लड़का था, जिसकी उम्र लगभग 18 साल थी और वो भी आगे की सीट पर बैठ गया था। अब तो हम दोनों को और भी आराम हो गया था। फिर पिक्चर चालू हुई, लेकिन पिक्चर पर तो किसका ध्यान था? अब मेरा दिमाग तो पापा के लंड की तरफ था और पापा भी तिरछी नजर से मेरी छोटी-छोटी चूचीयों की तरफ देख रहे थे। अब बस शुरुआत करने की देर थी कि कौन करे? अब में तो पापा का स्पर्श पाने के लिए वैसे ही मरी जा रही थी और फिर उसी वक़्त जैसे बिल्ली के भागों छिका टूटा हो, मेरे पैर पर किसी जानवर ने काटा हो, में उउउइई करती हुई खड़ी हो गयी।


फिर तब पापा ने घबराते हुए पूछा कि क्या हुआ? तो तब मैंने बताया कि मेरे पैर पर किसी कीड़े ने काटा है। तो तब पापा बोले कि बैठ जा और अब काटे तो तुम मेरी सीट पर आ जाना। तो में बैठ गयी और फिर 5 मिनट के बाद फिर से उछलती हुई खड़ी हो गयी, लेकिन इस बार मुझे किसी ने काटा नहीं था बल्कि में जानबूझकर खड़ी हुई थी। खैर फिर पापा हंसते हुए बोले कि तू मेरी सीट पर आ जा। फिर तब में बोली कि पापा कोई बात नहीं जैसे उस कीड़े ने मुझे काटा है, ऐसे ही आपको भी काट लेगा। तो तब पापा बोले कि तू एक काम कर मेरी गोद में बैठ जा। अब में तो पहले से ही तैयार थी तो पापा के बोलते ही में उनकी गोद में बैठ गयी और पर्दे की तरफ देखने लगी थी। अब में उनकी गोद में बैठी हुई बिल्कुल छोटी सी लग रही थी, मेरी उम्र उस वक़्त 18 साल ही तो थी।


अब पापा मेरी गर्मी पाकर गर्म होने लगे थे। अब उनका लंड फिर से खड़ा होने लगा था। अब मुझे भी उनके लंड पर बैठना बहुत अच्छा लग रहा था, वैसे तो हमारी नजर पर्दे की तरफ थी, लेकिन ध्यान सिर्फ़ अपनी-अपनी टाँगो के बीच में था। अब मेरा तो बदन जैसे किसी भट्टी की तरह तप रहा था। अब मेरी स्कर्ट में मेरी चड्डी बिल्कुल गीली हो रही थी। अब पापा का लंड ठीक मेरी गांड के छेद पर था और पापा धीरे-धीरे मेरा पेट सहला रहे थे। अब मेरा मन कर रहा था कि पापा अपना लंड ज़ोर-ज़ोर से मेरी चूत पर रगड़ दे, लेकिन ऐसा नहीं हो सकता था, क्योंकि हम दोनों ही एक दूसरे से शर्मा रहे थे। खैर फिर कुछ देर तक ऐसे ही बैठे रहने के बाद मैंने अपने हाथ में पानी की बोतल थी वो नीचे गिरा दी और फिर उसको उठाने के लिए झुकी तो पापा का लंड बहाने से अपनी चूत पर सेट किया और फिर सीधी बैठकर मज़े लेने लगी। अब 1 घंटा 30 मिनट निकल गये थे और हमें पता ही नहीं चला कि कब इंटरवेल हुआ?


फिर पापा मुझे पैसे देते हुए बोले कि कैंटीन से जाकर कुछ ले आओ तो में बाहर गयी और कैंटीन से कुछ खाने की चीज़े खरीदी और फिर टॉयलेट में चली गयी और फिर जब तक वापस आई तो पिक्चर चालू हो चुकी थी। फिर मैंने पापा की गोद में बैठते हुए कहा कि पापा मुझे आपकी गोद में बैठने में ज़्यादा मज़ा आ रहा है। फिर तब पापा बोले कि तो फिर 1 मिनट रुक और बैठे हुए ही अपने लंड को सेट करने लगे थे। अब मुझे अंधेरे में कुछ नहीं दिख रहा था और फिर जब उन्होंने मुझे बैठने को कहा, तो उन्होंने अपना हाथ कुछ इस तरह से मेरी स्कर्ट पर लगाया कि मेरी स्कर्ट ऊपर हो गयी और में उनकी गोद में फिर से बैठ गयी। फिर थोड़ी देर के बाद मुझे अहसास हुआ कि पापा ने अपना लंड अपनी पेंट में से बाहर निकाल रखा है और इस अहसास के साथ ही जैसे मेरे बदन ने एक तगड़ा झटका लिया और अब मेरा भी मन अपनी चड्डी उतारकर पापा का लंड मेरी चूत से चिपकाने का करने लगा था।


फिर उसके लिए मैंने फिर से एक प्लान बनाया और मेरे हाथ में कोल्डड्रिंक का जो गिलास था, उसे अपनी जांघों पर उल्टा दिया तो सारी कोल्डड्रिंक मेरे पैरो और चड्डी पर गिर गयी, तो तब पापा चौंकते हुए बोले कि यह क्या किया? तो तब मैंने कहा कि सॉरी पापा गलती से हो गया, में तो पूरी गीली हो गयी और मेरे कपड़े भी गीले हो गये। तो तब कपड़ो का मतलब समझते हुए पापा बोले कि जा और टॉयलेट में जाकर साफ कर आ और कपड़े ज़्यादा गीले हो तो उतारकर आ जाना, जल्दी सूख जाएँगे। अब मेरा मन पापा को छोड़ने का नहीँ था, तो मैंने वहीं खड़े होकर मेरी चड्डी उतारी और दूसरी सीट पर रखी और फिर से पापा के लंड पर बैठकरपापा के लंड को अपनी दोनों टाँगों के बीच में ले लिया। अब उनका लंड बिल्कुल मेरी चूत पर था। अब मुझे ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई गर्म लोहे की रोड मेरी जांघों में दबी पड़ी है। अब तो मेरा मन कर रहा था कि जल्दी से पापा अपना लंड मेरी चूत में डालकर ज़ोर से रगड़ दे, लेकिन हम ऐसा नहीं कर सकते थे।


अब मेरी बारी थी। फिर मेरा मन अपनी चूत को उनके लंड पर रगड़ने का हुआ तो तब में अपनी चड्डी उठाने के लिए झुकी और ज़ोर से अपनी चूत पापा के लंड पर रगड़ दी और फिर ऐसे ही 3-4 बार ज़ोर से रगड़ी, तो तब मुझे ऐसा लगा कि जैसे मेरा पानी निकल जाएगा। अब में कभी किस बहाने से तो कभी किस बहाने से हिलती और अपनी चूत पापा के लंड पर रगड़ देती थी। अब पापा समझ गये थे कि मेरा मन रगड़ने का हो रहा है। तब पापा ने मेरे पेट पर अपना एक हाथ रखकर दबाया और अपना जूता खोलने के बहाने से कभी खुजाने के बहाने से अपना लंड रगड़ने लगे थे। फिर कुछ ही देर में मुझे लगा कि जैसे मेरे जिस्म में से सारा खून फटकर मेरी चूत में से निकलने वाला है और फिर इसी के साथ मेरा पानी झड़ गया। अब में बिल्कुल ठंडी हो चुकी थी, लेकिन पापा ने 2-3 बार और अपना लंड रगड़ा और फिर पापा भी जैसे अकड़ से गये और उनका भी पानी निकलकर मेरी चूत और मेरे पेट पर फैल गया।


अब हम दोनों बिल्कुल शांत थे और बहुत थक गये थे। फिर 5 मिनट के बाद ही पिक्चर ख़त्म हो गयी और लाईट जलती इससे पहले ही मैंने अपनी चड्डी यह कहते हुए पहन ली कि अब वो सूख चुकी है। अब दोनों पिक्चर ख़त्म हो चुकी थी एक जो पर्दे पर चल रही थी और एक जो हम बाप बेटी के बीच में चल रही थी। फिर थोड़ी देर के बाद लाईट जली और फिर हम दोनों हॉल से बाहर निकले। फिर बाहर आकर पापा मुस्कुराते हुए बोले कि पिक्चर कैसी लगी? तो तब मैंने जवाब दिया कि इससे बढ़िया पिक्चर मैंने आज तक नहीं देखी, तो तब पापा बोले कि मेरे साथ घूमा करेगी तो और भी बढ़िया चीज़े देखने को मिलेंगी और फिर में मस्कुराती हुई गाड़ी पर बैठ गयी और फिर हम घर की तरफ चल पड़े ।


Monday, January 15, 2018

सील तोड़ने का मजा

मैं संदीप पुणे का रहने वाला हूँ, मेरी उम्र 26 साल है, दिखने मे हट्टा-कट्टा हूँ, मैं एक सच्ची कहानी आपको बताने वाला हूँ।
लेकिन उससे पहले मैं आपको अपने लण्ड के बारे में बताता हूँ, मेरा लण्ड 7 इंच लंबा है और खुदा की देन मानो वो नई कोरी चूत सील तोड़ने के लिए ही बनाया है क्योंकि उसका आकार आगे सुपारे की तरफ सिर्फ 2 इंच मोटा है और पिछली तरफ 3 इंच मोटा है, मेरे इस लण्ड का फायदा मुझको तब होता है जब किसी नई चूत का सील तोड़ना होता है। आप सब जानते है कि जब किसी लड़की की सील टूटती है तो उसको कितनी तकलीफ होती है लेकिन मेरे लण्ड आकार ऐसा होने कारण लड़कियॉ अपनी सील तोड़ने के लिए मुझको बहुत पसंद करती हैं।
मैंने आज तक 31 लड़कियों की सील तोड़ी हैं। मैं पुरानी चूत तभी मारता हूँ जब मुझे कोई कुंआरी चूत नहीं मिलती।
यह उस समय की बात है जब मेरी उमर 20 साल थी। हमारे घर के सामने एक परिवार रहता था जिसमें एक लड़की भी थी। उसका नाम नीता था। वो दिखने में कयामत थी, उसकी उमर उस समय 19 साल थी। उसके मम्मे तो एकदम गोल-गोल और 34 इन्च के थे। रंग एकदम गोरा, लंबे बाल, गोल-गोल चूतड़ (गांड)।
मैं उसे शुरु से बहुत पसंद करता था और हमेशा उसे चोदने के बारे में ही सोचता था। वो और मैं एक ही कक्षा में पढ़ते थे। हम दोनों एक साथ ही कॉलेज़ में आते-जाते थे। उस समय हमारी आपस में बहुत अच्छी बनती थी। उसके घर वालों ने उसे आने जाने के लिए नई स्कूटी लेकर दी और उसके पापा को काम से समय ना होने के कारण उन्होंने उसे स्कूटी चलाना सिखाने के लिए मुझको पूछा और मैंने भी हाँ कर दी।
रोज कॉलेज़ से आने के बाद हम शाम को पास के मैदान में जाते और मैं उसे स्कूटी सिखाने लगा। जब मैं उसको गाड़ी चलाना सिखाता तो वो आगे बैठती और मैं पीछे बैठकर उसे बैलेन्स करने में मदद करता था।
जब मैं पीछे बैठता तो मेरा लण्ड उसकी गाण्ड पर रगड़ जाता था और मेरे हाथ उसके मम्मों को टकराते थे। जितनी देर मैं उसको सिखाता, मेरा लण्ड खड़ा ही रहता था और उसकी गांड पर घिसता रहता था, वो भी कुछ नहीं कहती थी।
3-4 दिनों के बाद मैंने उसको कहा- नीता, चलो थोड़ा शहर से बाहर जाकर एकांत सड़क पर प्रैक्टिस करते हैं।
वो भी तैयार हो गई।
हम शहर से करीब 15-20 किमी बाहर जाकर प्रैक्टिस करने लगे, वो गाड़ी चला रही और मैं पीछे बैठकर हैण्डल पकड़े था। जब वो अच्छी तरह चलाने लगी तो मैंने अपने हाथ हैंडल से उठाकर उसकी जाँघों पर रख दिए, उसने कुछ भी नहीं कहा।
तो मैंने थोड़ा और बढ़ते हुए ऊपर उठा कर उसके मम्मों पर रख दिए और हल्के से दबाये। जब उसने कुछ नहीं कहा तो मैं उस पर हाथ फेरने लगा।
उसे भी अब अच्छा लग रहा था। फिर उसने गाड़ी रोक दी और कहा- चलो, पेड़ के नीचे बैठते हैं।
पेड़ के नीचे बैठने के बाद मैंने उसे अपनी बाँहों में लेते हुए उसे आई लव यू कहा।
तो जवाब में नीता ने भी मुझको चूम लिया। उसे भी अब अच्छा लग रहा था।
मैं उसे अपनी बाँहों में लेकर जोर-जोर से उसके होंठ चूसने लगा और उसके मम्मे टी-शर्ट के ऊपर से दबाने लगा। अब वो भी गर्म होने लगी थी तो मैं उसकी टी-शर्ट उतारकर उसके मम्मे चूसने लगा।
लेकिन जैसे मैंने उसकी जीन्स उतारने की कोशिश की तो वो मना करने लगी और कहने लगी- नहीं ! मत करो, नही, मत करो।
तो मैं नाराज होकर उठ जाने लगा तो उसने कहा- मेरी सहेलियों ने बताया था कि पहली बार बहुत तकलीफ होती है?
तो मैंने उसे समझाया कि मैं तुमको बिल्कुल तकलीफ नहीं होने दूँगा। और फिर से जोर-जोर से उसके होंठ चूसने लगा।
अब वो भी मेरा साथ देने लगी तो मैं उसके मम्मे चूसने लगा और उसकी जीन्स उतार दी।
अब वो सिर्फ काले रंग की पैन्टी में थी। मैंने झटके से उसकी पैन्टी उतार दी और उसकी छोटी झांटों वाली चूत चाटने लगा।
फिर मैंने उसे लिटा दिया और उसकी संगमरमरी चूत को उंगली से चोदने लगा। उसकी चूत एकदम कसी थी, अनचुदी कली थी।
वह सिसकारियाँ भर रही थी और इतने में ही नीता झड़ चुकी थी। मैंने उसके रस को साफ़ कर दिया।
तब मैंने अपना लौड़ा उसकी चूत की छेद से सटाया और सांस रोक कर जोर लगाने लगा। पर उसक चूत बहुत कसी लग रही थी।
तो मैंने थोड़ा जोर से धक्का लगाया तो उसकी चीख निकल गई। लौड़े का सुपारा उसकी चूत में घुस चुका था। उसकी सील टूट गई और खून निकलने लगा।
अब मैंने लण्ड को थोड़ा सा पीछे करके एक और जरा सा धक्का दिया, लण्ड चूत की दीवारों को चीरता हुआ आधा घुस गया। अब वह दर्द के मारे अपने सर को इधर-उधर मार रही थी।
मैंने अपनी साँस रोकी और लण्ड को थोड़ा पीछे करके एक और धक्का दिया तो मेरा पूरा लण्ड उसकी चूत में घुस गया।
थोड़ी देर रुक कर मैं धीरे-धीरे लण्ड आगे-पीछे करने लगा। नीता का दर्द अब कम हो रहा था और उसे भी अब मजा आ रहा था।
तो मैंने अपनी रफ्तार थोड़ी तेज कर दी, नीता अब कमर उठा-उठा कर मेरा साथ दे रही थी। उसे बहुत मजा आ रहा था। वो अब 'कम आँन- फक मी हार्ड' कहकर मेरा साथ दे रही थी।
हम दोनों की साँसे तेज हो गई थी, नीता अ..आ... उ.. ऊ.. आ की आवाज करके मजा ले रही थी।
दस मिनट की चुदाई के बाद नीता आऽऽ ओऽऽ उऽऽउ उफ करते हुए झड़ गई।
अब मैंने भी अपनी गति बढ़ा दी।
करीब 20 मिनट की चुदाई के बाद मैं उसकी चूत में ही झड़ गया और उसके ऊपर ही निढाल होकर गिर गया।
उसके चेहरे पर आनन्द और संतुष्टि साफ दिखाई दे रही थी। फिर हम कपड़े पहनकर वहाँ से वापस निकले।
वापस आते समय उसने मुझे बताया कि डर बहुत कम हो गया है।
उसके बाद मैंने नीता की बहन और उसकी चार सहेलियों की सील तोड़ी। वो मैं आपको बाद मैं बताऊँगा। 

Friday, January 12, 2018

Marathi sex stories मराठी प्रणय कथा

मी दहावीत शिकत असतानाची ही गोष्ट. आमच्या गल्लीमध्ये माझ्या घराच्या पुढे चार घरे सोडून शोभाताई रहायची. तिचे शिक्षण पूर्ण झाले होते. व ती घरीच असायची. तिची आई कामाला जायची. व तिचे बाबा कामानिमित्त बाहेरगावी असायचे. तिचा भाऊ इंजिनीअरिंग करीत होता व तो होस्टेलवर रहायचा. दिवसभर शोभाताई घरी एकटीच असायची. तिचे व माझ्या आईचे खुप जमायचे. ती सतत आमच्या घरी यायची. माझ्या आईला ती कामात मदत करायची. आईला ती काकू म्हणायची. माझा लहान भाऊ खुप वात्रट होता. म्हणून आईने तिला त्यांच्या घरी माझा अभ्यास घेण्याची विनंती केली. ती पण हो म्हणाली.
मग मी रोज तिच्याकडे जाऊ लागलो. ती खुपच छान अभ्यास घ्यायची. ती शिकवताना कधी रागवायची नाही. खुप समजुन सांगायची. मला लगेच समजायचे. मग मी दहावीची परीक्षा दिली.सर्व पेपर खुपच छान गेले. मी रोज शोभाताईकड़े जायचो. संध्याकाळी मात्र मी मित्रांकडे जायचो. आम्ही सर्व जमलो की पोरींची टवाळी करू लागलो होतो. पोरिंविशयी मला खुप आकर्षण वाटु लागले होते. पण साला एक पोरगी पटेल तर शप्पत. एखाद्या मुलीचे मोठे गोळे बघितले की आमचा बाबुराव खाडकन जागा व्हायचा. मग मात्र त्याला शांत करता करता नाकि नऊ यायचे.

शोभाताई दिसायला खुप सुन्दर होती. ती साधारणपणे २० वर्षाची असावी. गोरी गोरीपाण सुन्दर नयन, नाक थोड़े छोटेसे होते पण तिचे ओठ नाजुक व गुलाबी होते. ती उंच होती पण थोडीशी जाड होती.केस काळेभोर व तिच्या नितंबाना स्पर्श करीत होते. वक्ष मोठे व उभारदार होते.ती घरात नेहमी परकर व पोलका घालायची. तिचे नितम्ब खुपच सुन्दर व कड़क होते. तिची त्वचा खुपच मुलायम होती. ती खुपच मादक व खळखळउन हसायची. तिचे बोलने खुपच गोंड होते. मला ती खुप आवडायची.मात्र माझ्या मनात कधीही तिच्या बद्दल वाईट विचार आले नव्हते.

एक दिवस मी असाच कोपऱ्यावर उभा राहून टवाळकी करीत होतो आणि तेवढ्यात शोभाताई तिथे दुकानात काहीतरी घेण्यासाठी आली होती. माझे अचानक तिच्याकडे लक्ष गेले. मी खुप घाबरलो. पुरता भेदरून गेलो होतो मी. मला काहीच सुचेना. म्हटले, बोम्बला, आपली काही खैर नाही आता. मी शोभाताई जवळ गेलो ती नाक फेंदारून रागाने माझ्याकडे पाहत निघून गेली. मी मग थोडासा धीर एकवटून तिच्या मागे गेलो. ती माझ्याच घरात घुसली.गोट्या कपाळात जाने म्हणजे काय ते मला आत्ता समजले. तसाच मनाचा हिय्या करून घरात घुसलो. तिने माझ्या आई जवळ सामान व पैसे दिले आणि ती जाऊ लागली. मी तिला घराबाहेर जाऊ दिले मग तिच्या मागे गेलो आणि तिच्याशी बोलण्याकरीता तिला थांबवू लागलो, पण ती मला भिक घालायला तयार नव्हती. मी हिरमुसला होउन तिथून निघालो. माझे कशातच लक्ष लागत नव्हते. संध्याकाळी मी परत मित्रांकडे गेलो. पण तिथेही माझे मन रमेना. रम्याने मला विचारले, काय झालय रे तुला. मी त्याला सर्व परिस्थिति सांगितली. तर तो म्हणाला, अरे सोड रे, ती तरी कुठे साजुक आहे. ती नाही का सुरेशदादाला चढवून घेत. काय? मी जवळ जवळ किंचाळलोच. तो म्हणाला खरेच बोलतोय मी , हवे तर संजाला विचार. संजाने पण मान डोलावली. मला खुप राग आला होता. मी तिथून तड़क घरी आलो. शोभाताईबद्दल कुणी असे काही बोलले तर मला ते आवडत नव्हते. शोभाताई रोज आमच्या घरी यायची पण माझ्याशी ती बोलत नव्हती.

मग तो दिवस उजाडला. त्या दिवशी माझा रिझल्ट होता. माझे बाबा घरी नव्हते म्हणून मी व माझी आई शाळेत गेलो. मला ८९% पडले होते. आई खुप खुश झाली. मग आम्ही येताना वाटेत थांबुन पेढे घेतले आणि घराकडे निघालो. रस्त्यात माझा एक मित्र भेटला. मी आईला सांगुन त्याच्याजवळ थांबलो. आईने लवकर घरी येण्यासाठी बजावले. मी हो म्हणालो. थोडा वेळ त्याच्याबरोबर टाइमपास केला आणि घरी आलो. घरी आल्यावर आईने तोंडहातपाय धुवून देवा जवळ पेढा ठेवायला सांगितला. देवाजवळ पेढा ठेवल्यावर आईने एक पेढा मला भरविला व स्वत एक पेढा खाल्ला अन मला म्हणाली जा पहिला जावून शोभाताईला पेढे देऊन ये. मी गप्प झालो व तिथेच घुटमळत राहिलो. आई म्हणाली, अरे जा ना. मी म्हणालो, आई ती माझ्यावर चिडली आहे. ती माझ्याशी बोलत नाही. तर आई पटकन म्हणाली, अरे जा काही नाही होत. तूच काहीतरी वात्रटपना केला असशील. ती मोठी आहे ना तुझ्यापेक्षा. तिनेच तुझा अभ्यास घेतलाना. जा तिला पेढा पण दे आणि तिची माफ़ी पण माग. मला माहित आहे तिचा स्वभाव. ती कधी कुणावर चिडत नाही. आईने असे म्हनल्यावर मला खुप बरे वाटले. मी तड़क तिच्या घरी गेलो. दरवाजा बंद होता, म्हणून मी थोडासा लोटला तर तो उघडला मी मनाचा हिय्या करून आत गेलो. शोभाताई पलंगावर ओणवी होउन कसले तरी पुस्तक वाचत होती. मी हळूच तिला हाक मारली व म्हणालो शोभाताई, मला ८९% पडले. तिने पटकन ते पुस्तक उशीखाली ठेवले आणि माझ्याकडे पाहत उठली आणि मला मीठी मारली. व म्हणाली, ग्रेट मला माहित होते की तुला खुप चांगले मार्क्स मिळणार. असे म्हणून तिने माझी पप्पी घेतली व म्हणाली आधी पेढे दे. मी पुडा तिच्यासमोर धरला. तिने त्यातून एक पेढा काढून मला भरविला. पेढा खाताना मी तिला म्हणालो अग तू पण खा ना. तर ती म्हणाली मी तुला पेढा भरविला आता तू मला भरव. मी तिला पेढा भरवला.पेढा खातखात ती म्हणाली बंटी मला आज खुप आनंद झालाय, तू अगदी माझ्या अपेक्षेप्रमाने मार्क्स मिळविलेस. सांग तुला काय गिफ्ट हवय. मी म्हणालो काही पण तुला आवडेल ते दे. तिचा मूड बघून मी पटकन तिला म्हणालो, शोभाताई सॉरी, मी त्या दिवशी चुकलो, मी परत नाही असे करणार. तिने परत मला जवळ ओढले आणि माझ्या गालाची पप्पी घेत म्हणाली, मला माहित आहे तू असा नाहीस पण कुठल्याही मित्रांच्या नादाने तू काही चुकीचे करावे असे मला नाही वाटत. तिचे उरोज माझ्या हनुवटी आणि ग़ळ्याला स्पर्श करीत होते. तिचा तो उबदार स्पर्श मला मोहुन टाकित होता. मी ही तिला बिलगलो. बंटी, अरे असे छेडून मुली पटत नसतात. मी म्हणालो, माझा तस हेतु नव्हता. ती हसून म्हणाली अरे तुझ्या वयात मुलींबद्दल आकर्षण निर्माण होने हे काही नवीन नाही. मुली पटवन्याचे अनेक मार्ग आहेत. मी तुला शिकवल मुलींना कसे पटवायचे ते. आणि मला विचारले तुला कशा मुली आवडतात? मी म्हणालो की स्वभावाने छान आणि दिसायला सुन्दर. तिने थोडा विचार केला आणि म्हणाली सुन्दर म्हणजे कुनासारखी? मी म्हणालो तुझ्यासारखी खुप सुन्दर नसेल तरी चालेल. तिने परत मला मीठी मारली अणि विचारले मी एवढी सुन्दर आहे का? मी म्हणालो हो प्रश्नच नाही. ती म्हणाली तू माझ्यात काय पाहिले की मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो तुझा गोरा रंग.ती म्हणाली बस गोऱ्या रंगामुळे मी तुला सुन्दर दिसते. मी म्हणालो नाही ग तुझे लांबसड़क काळेभोर रेशमासारखे केस, तुझे टपोरे डोळे, तुझे लाल लाल कान, तुझे गुलाबाच्या पाकळयासारखे ओठ. ती लड़ीवाळपणे मला म्हणाली सांग ना आणखी काय आवडते? तुझा गोंड गळा. ती म्हणाली पुढे बोल ना. आता माझा बाबुराव उठू लागला होता. मी तुझ्या छातीवरचे ते दोन मोठे गोळे म्हणता म्हणता माझे शब्द गिळून म्हणालो शोभाताई तू खुप सुन्दर आहेस. तिने परत माझ्या गालाची पप्पी घेतली. मी घाबरत तिला विचारले शोभाताई मी पण तुझी पप्पी घेऊ का? काही न म्हणता तिने डोळे मिटून घेतले. मग मी धीर एकवटून तिच्या गालाच्या जवळ माझे ओठ नेताना पाहिले तिचे ओठ थरथरत होते. तिच्या सर्वांगावर शहारे आले होते. ते पाहून मी तिच्या ओठांवर माझे ओठ ठेवले. ती काहीच म्हणाली नाही. आता मात्र माझा बांध तुटू लागला. मग मी पहिल्यांदा तिला खुप आवळले आणि तिच्यावर माझ्या मुक्यांचा वर्षाव करू लागलो. ती पण मला प्रतिसाद देत होती. माझे हाथ तिच्या मानेवर गेले होते. मग मी तिच्या तोंडात तोंड घालून तिचा मुका घेत होतो. आम्हाला दोघानाही सर्व जगाचा विसर पडला होता. तिचे मुलायम हाथ एव्हाना माझ्या शर्टमध्ये घुसले होते. ती हळूवारपणे तिचा मुलायम हात माझ्या छातीवर फिरवित होती. मग मी पण मुका घेत घेत माझा एक हात हळूच तिच्या छातीवर आणला आणि तिच्या एका उरोजाला दाबले. ती हळूच सित्कारली. मी तिच्या पोलक्यावरुनच तिचे गोळे कुस्करत होतो. ती खुप गरम झाली होती. तिने माझ्या शर्टची बटने काढ़ायला सुरवात केली.तिचे कान लालबुंद झाले होते. मी हळूच तिच्या कानाचा चावा घेतला. तशी ती पुन्हा सित्कारली. तिने माझा शर्ट काढला. माझ्या प्यांटीतुन माझ्या लवडयाचा उभार स्पष्ट दिसत होता. ती वरुनच माझ्या लवडयाला कूरवाळू लागली. कुरवाळत असताना तिने मला हलकेच ढकलत पलंगाकडे सरकावले. मी पलंगावर पडलो आणि ती माझ्या अंगावर पडली. मी परत तिचा मुका घेतला व तिच्या पोलक्याची बटने काढू लागलो. तिची सर्व बटने मी पटापट काढली व तिचा पोलका बाजूला केला. तिने सफ़ेद ब्रा परिधान केली होती. तिचे ते सुन्दर गोरेपान शरीर बघून मी वेडा झालो. मी तिचे दोन्ही स्तन तसेच कूरवाळू लागलो. मग मी तिला माझ्या जवळ ओढले व तिची ब्रा काढू लागलो पण मला काही जमेना. मग मी तिला ब्रा काढायला सांगितली. ती उठली आणि माझ्याकडे पाहून हसली. मला कळेना ती का हसली, पण लगेच मला उमगले की तिच्या ब्रा चे हुक पुढेच होते. तिने हुक काढताच तिची दोन्ही कबूतरे मोकळी झाली. केवढे मोठे स्तन होते तिचे. त्याच्या अग्रभागी गुलाबी रंगाची तिची कड़क बोंडे त्या गोऱ्या स्तनांचा आकर्षकपणा वाढवित होती. तिच्या स्तनांवर हिरव्या रंगाच्या नसा फुगून स्तनान्मध्ये ताठरपना आला होता. मग मी हळूच तिचा एक स्तन तोंडात घेतला आणि त्याला चोखू लागलो. तशी शोभाताई खुपच वेडीपीशी झाली. मग तिने माझी चेन काढून आत हात घातला. माझा लवडा ती दाबू लागली. माझ्या मस्तकातुन एक जोराची कळ निघाली. आज पहिल्यांदाच कोणीतरी माझ्या लवड्याला हात लावला होता. मला खुप बरे वाटत होते. तिने माझ्या प्यांट चे बटन काढले व माजी प्यांट ती हळूहळू काढू लागली. माझी जींस असल्याने ती खाली सरकवताना माझी अंडरविअरपण थोड़ी खाली सरकली आणि माझा लंड त्यातून थोडा बाहेर आला. शोभाताई ने हे पाहताच माझ्या अंडरविअरमध्ये हात घालून खाली सरकवली व माझा ताठलेला लवडा हातात घेउन त्याच्याशी खेळू लागली. मला असे वाटु लागले की आता माझ्या लवडयातुन काहीतरी बाहेर पडणार मी तिला लगेच थाम्बवले. तिने विचारले काय झाले. मी म्हणालो मला असे वाटतय कि आता माझा चिक बाहेर पडतोय. ती म्हणाली," मग तू आता कर ना." मी म्हणालो," ठीक आहे." मग ती पलंगावर आडवी झाली. मी तिच्या परकराची नाडी खेचली. मी तिचा परकर खाली ओढू लागलो. परकर खाली खेचताना मला तिची बेम्बी दिसली. तिची बेम्बी खुपच सुन्दर होती असे वाटत होते की त्याची पप्पी घ्यावी पण आता मी कंट्रोल करू शकत नव्हतो. तिचा परकर खाली खेचताच तिच्या गोऱ्या गोऱ्या मांड्या वरची तिची निळ्या रंगाची फुलांची चड्डी दिसू लागली. तिचे शरीर म्हणजे संगमरवरच वाटत होते. आता माझ्या सहनशक्तीचा अंत झाला होता. मी पटकन तिची चड्डी खाली ओढली आणि मला तिची पुच्ची दिसू लागली. काय सुन्दर भूरी पुच्ची होती. तिची काळीभोर आणि मुलायम झाटे बघून मला कधी एकदा माझा लंड तिच्या पुच्चित घालतो असे झाले होते.